Ek Sunsan Haweli - The Andheri Raat ( Part - 2 )

 
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 Ek Sunsan Haweli - The Andheri Raat ( Part - 2 )  

                            
            एक सुनसान हवेली – द अँधेरी रात ( भाग – 2 )
                          


लेखक – आरिफ खान
ईमेल – 9166672008arif@gmail.com


हम चौथी मजिल पर ही पहुंचे थे की जेब में रखा मेरा फ़ोन बजने लगा.
मैने जेब से फ़ोन निकाला तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी. मेरे फ़ोन पर देबाशीष की काल आ रही थी. जबकि देबाशीष तो मेरे आगे आगे चल रहा था

मैने आगे चल रहे देबाशीष से पूछा की उसका फ़ोन कहाँ है. उसने बताया उसकी जेब में.

ये सुनकर मैं बहुत डर गया. मैंने उसको बोला की मेरी मम्मी की कॉल आ रही है और मुझे नीचे जाना पड़ेगा बात करने की लिए क्युकी यहाँ सिगनल नहीं आ रहे हैं.

देबाशीष मेरको ऊपर चलने की लिए फाॅर्स करने लगा, लेकिन मैं जल्दी से भाग के नीचे आ गया. नीचे आते ही मैं सीधा बिल्डिंग से बहार निकल गया. नीचे पहुंचते ही मैने देबाशीष की काल उठायी, उसने मुझे पूछा की मैं कहाँ हूँ, मैने कहाँ बिल्डिंग की सामने.

मैने उससे पूछा की वो कहाँ है, उसने कहा की वो भी बस पहुंच ही रहा है वहां घर से.
उसके पहुंचते ही मैंने उससे पूछा की क्या तुम मेरे साथ ऊपर नहीं गए थे ?

उसने बताया की वो तो अभी ही पहुंचा हैं वहां. तो मैने उसको पूरी बात बताई.
हम दोनों बहुत डर गए थे. हमने जल्दी से कुछ लोगो को इकट्ठा किया वहां और ऊपर गए उस शख्स को ढूंढ़ने

की लिए जो मुझे ऊपर ले जा रहा था. लेकिन ऊपर हमें कोई नहीं मिला.
इस घटना की बारे में सोच कर मैं आज भी बहुत डर जाता हूँ. अगर उस दिन मेरे दोस्त का फ़ोन नहीं आया होता मेरे पास तो शायद आज मैं भी जिन्दा नहीं होता.


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